टीम को 20 हजार रुपये देकर रोजगार सहायक ने मनमाना रिपोर्ट बनवाया

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टीम को 20 हजार रुपये देकर रोजगार सहायक ने मनमाना रिपोर्ट बनवाया

 

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कोरबा(आधार स्तंभ) : जिले के ग्रामीण खासकर दूरस्थ अंचलों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में खेला थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रमाणित-अप्रमाणित (किन्तु सत्य) शिकायतों के बीच खबर आई है कि कई पंचायतों में सोशल ऑडिट घर बैठकर हो रहा है।

वैसे तो सोशल ऑडिट का उद्देश्य मनरेगा निर्मित कार्यों की गुणवत्ता सुनिश्चित करना और ग्रामीणों की शिकायतों की जांच करना होता है लेकिन बांगो बस्ती में सोशल ऑडिट के कर्मचारी 3 दिनों तक रोजगार सहायक के घर मे बैठे ही ऑडिट कर दिए। यहाँ रोजगार सहायक के कारनामों पर पर्दा डालने का काम किया गया जिसके एवज में रोजगार सहायक ने ऑडिट करने आये कर्मचारियों को 20 हजार रूपये दिए। इसका एक आडियो भी सामने आया है। इसमें कहा जा रहा है कि वर्तमान सचिव का सहयोग नहीं मिलता, अगर सहयोग नहीं देंगे तो मै खुद सक्षम हूँ, सभी को पैसे देकर मैनेज कर लेता हूँ। हाल-फिलहाल में सोशल ऑडिट वालो को 20 हजार रूपये दिया हूँ और उन्होंने मेरे कार्यो को सही-सही दर्शा दिया है।

उक्त बातें फोन कॉल में रोजगार सहायक ने वर्तमान सचिव से कही,साथ ही सचिव को भी किसी मामले में फंसा देने व बांगो पंचायत में दूसरा सचिव लाने की बात भी कही जो सरपंच व रोजगार सहायक की पैरवी करेगा। यह खेल इस वर्ष ही नहीं बल्कि प्रत्येक वर्ष बांगो बस्ती में होता आया है। बांगो पंचायत में अनियमितता की कई शिकायत है लेकिन कार्यवाही शून्य, और अभी सोशल आडिट में कार्य शत-प्रतिशत दर्ज किये हैं जिसमे कर्मचारी समेत बड़े अधिकारी भी सवालों के घेरे में हैं।

 

सोशल ऑडिट टीम का कार्य गैरजिम्मेदाराना

नियमतःसोशल ऑडिट (सामाजिक अंकेक्षण) टीम के द्वारा गांव में जाकर स्थल निरीक्षण किया जाता है और सभी दस्तावेजों की जांच करती है। इसके बाद, गांव में एक खुली बैठक आयोजित की जाती है, जहां काम में किसी भी गड़बड़ी को प्रमुखता से दिखाया/बताया जाता है लेकिन पोड़ी उपरोड़ा जनपद क्षेत्र में इसके बिलकुल विपरीत है। सोशल ऑडिट के कर्मचारी रोजगार सहायक के घर बैठकर ऑडिट कर दिए हैं। सब लापरवाही की शिकायत सोशल ऑडिट के ब्लॉक अधिकारी को बताया गया तब आनन-फानन मे पंचायत भवन में तत्काल सभा आयोजित की गई लेकिन वहां भी रोजगार सहायक के कारनामों को छिपाया गया। रोजगार सहायक ने अपने कारनामे छिपाने के लिए ऑडिटरों मोटी रकम भी दी है। कुल मिलाकर मामला रफा-दफा हो और मनरेगा में कार्य करने वाले कर्मचारी अपने आपको सही साबित करें। अब मामले में देखना है कि उच्च अधिकारी रोजगार सहायक के काले कारनामों के जांच में कितनी ईमानदारी दिखाते हैं अन्यथा यह मामला भी अधिकारी संरक्षण देकर रफा-दफा कर देंगे।

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