आबकारी विभाग के नाक नीचे गांवों में धड़ल्ले से बिक रही देशी-अंग्रेजी की शराब ,पुलिस की यदा-कदा कार्यवाही लेकिन आबकारी अमला निष्क्रिय

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कोरबा/कोरबी-चोटिया (आधार स्तंभ) :  आबकारी विभाग की निष्क्रियता के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में खुलेआम अंग्रेजी शराब बेची जा रही है। पोड़ी-उपरोड़ा ब्लाक अंतर्गत सुदूर वनांचलों में गोवा ब्रांड की शराब एमपी से ला कर गांवों में अवैध रूप से सप्लाई हो रही है। एनएच-130 कटघोरा, अंबिकापुर, सड़क एवं स्टेट हाईवे के सड़क मार्गो में संचालित होटल,ढाबों पर बेधड़क अंग्रेजी शराब परोसे जा रहे हैं।आसपास के ढाबों में अवैध रूप से शराब की बिक्री बढ़ गई है। जहां सांझ ढलते ही सुरापान केंद्र में तब्दील हो जाते हैं और वहीं गांवों में बिकती महुआ शराब अराजकता बढ़ा रही है। पुलिस तो यदाकदा कार्रवाई करती है लेकिन आबकारी विभाग छापामार कार्रवाई के नाम पर सिर्फ सरकारी डीजल फूंक रहे हैं और प्रतिमाह लाखों-करोड़ का वारा- न्यारा करते हुए प्रशासन को ग्रामीण इलाकों से कुछेक धरपकड़ की कार्रवाई दिखा रहे हैं।

सरकार लगातार अवैध शराब की बिक्री को रोकने का प्रयास कर रही हैं। इसके लिए पुलिस व आबकारी विभाग को जिम्मा सौंपा गया है, पुलिस तो समय- समय पर अपनी कार्रवाई करती है लेकिन आबकारी अमला ज्यादातर भयादोहन कर रंगदारी वसूली में लगी है। हालात ऐसे हो गये हैं कि शराब दुकानों की अपेक्षा अब गांवो में हाथ भट्ठी और ढाबों में देशी-अंग्रेजी की शराब अधिक बिक रही हैं। पोड़ी उपरोड़ा विकासखण्ड के गांवों में जहां खुलेआम बिना डिग्री वाले महुआ शराब की बिक्री हो रही हैं तो वहीं बागों थाना के अधीन मोरगा एवं इसके बाहर आसपास के ढाबों में अंग्रेजी शराब मिल रही है जिससे कानून व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है। अवैध महुआ शराब बिक्री से गांवों का माहौल यह है कि शराबी वर्ग नशे में अपशब्दों का प्रयोग और अराजकता फैलाते गली-मोहल्लों में घूमते नजर आते हैं तो वहीं 10-12 साल के बच्चे भी 10-10 रुपए मिलाकर शराब की लत के आदी होते जा रहे हैं। दूसरी ओर ढाबों में बिकती शराब, सांझ ढलते ही जहां शराबियों की महफिलें सजनी शुरू हो जाती है और संचालकों के द्वारा अवैध रूप से शराब बिठाकर पिलाए जाने का खेल शुरू हो जाता है। आसान शब्दों में कहें तो जहां खानपान के स्थान तब शराबियों के अड्डे में तब्दील हो जाते है। कुछेक ढाबे ऐसे भी जहां वर्षो से खाने की कोई व्यवस्था नहीं सिर्फ पीने की व्यवस्था संचालित की जा रही है, और तो और शासकीय शराब दुकान कर्मियों की मिलीभगत से ढाबों तक पहुंचती है। विडंबना यह कि गांवों में बिक रही अंग्रेजी शराब के ज्यादातर स्थानों पर आबकारी विभाग की माहवारी बंधी हुई है और प्रशासन को दिखाने के लिए समय-समय पर कुछेक धरपकड़ की कार्रवाई कर अपने हाथों अपनी पीठ थपथपाने का काम किया जाता है। ढाबों के कारगुजारियों की खबर होने के बाद भी इन पर कोई छापामार कार्रवाई नहीं करती या यूं कहें कि खानपान सामाग्री बिक्री की आड़ में चल रहे इन अवैध शराब अड्डों को विभाग खुद बढ़ावा दे रखी है। इससे लगता है कि विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों को जहां से सिर्फ महीने की बंदी से मतलब होता है, उनकी मंशा कभी नहीं होती है कि इन पर रोक लगाई जाए। निर्मित यह हालात अवैध शराब बेचने वालों के हौसले बुलंद कर रहे हैं। यदि समय रहते इन पर ठोस कार्रवाई नहीं की गई तो दिन ब दिन हालात बिगड़ते ही जाएंगे।

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