मजबूत विवेचना में पूर्व पत्नियों का शपथ पत्र बना कड़ी सजा का आधार
कोरबा (आधार स्तंभ) : विवाह का झांसा देकर दैहिक शोषण करने वाले आरोपी को एक्ट्रोसिटी न्यायालय के विशेष न्यायाधीश (पीठासीन) जयदीप गर्ग ने सश्रम आजीवन कारावास की सजा से दंडित किया है।
पीड़िता से नौकरी के संबंध में जान- पहचान बढ़ने पर आरोपी अशोक राजवाड़े पिता जवाहर लाल राजवाड़े निवासी जी-49 पन्द्रह ब्लॉक कोरबा धीरे-धीरे अपनी बातों में उलझाकर यह कहते हुये कि वह अविवाहित है और वह उससे अत्यधिक प्रेम करता है शादी करना चाहता है, कहकर उसे शादी करने का झांसा देकर दिनांक 02.11. 2017 को अपने साथ बिलासपुर ले गया और कुछ स्टाम्प पेपर में पारिवारिक समझौता पत्र बनवाकर उस पर उसका फोटो चस्पित करते हुए उससे शादी कर रहा है बोला। फिर उसे अपने साथ हाउसिंग बोर्ड कालोनी रामपुर में एक मकान में ले जाकर रखा था तथा लगातार उसके साथ शारीरिक संबंध बनाते रहा। बाद में घर ले जाने की बात पर सामाजिक व जातिगत कारण बताया, फिर खुद को विवाहित एवं बच्चे भी होना बताकर गाली-गलौच कर घर से पीड़िता को निकाल दिया। पीड़िता की रिपोर्ट पर पुलिस ने अपराध दर्ज कर विवेचना उपरांत प्रकरण न्यायालय में पेश किया।
पत्नी बताकर आपसी सहमति से बचने का प्रयास
न्यायालय में आरोपी ने पीड़िता को अपनी पत्नी बताकर आपसी सहमति का मामला बताने का प्रयास किया था किन्तु उसके द्वारा पूर्व में किये गए कृत्य और निष्पादित शपथ पत्र ही उसकी कठोर सजा का आधार बने।आरोपी द्वारा पूर्व में भी 2 अन्य महिलाओं से विवाह कर छोड़ दिया गया था। पुलिस ने अपनी विवेचना के दौरान इन्हीं दोनों महिलाओं /पूर्व पत्नियों को साक्षी बनाया था। न्यायालय ने गंभीर अपराधिक कृत्य मानते हुए आरोपी को आजीवन सश्रम कारावास और कुल 50 हजार रुपए अर्थदण्ड की सजा से दंडित किया है, जबकि दैहिक शोषण के सामान्य मामलों में 10 वर्ष तक की सजा होती आई है।
दैहिक शोषण के ज्यादातर मामले जिसमें पीड़ित और आरोपी के मध्य विवाह संबंधी शपथ पत्र हो, उन मामलों में आपसी सहमति का मामला मानकर न्यायालय द्वारा आरोपी को दोषमुक्त कर दिया जाता है, पर इस मामले में यही शपथ पत्र दोषसिद्धि का आधार बना।
दोषसिद्धि के लिए साक्ष्य प्रस्तुतिकरण महत्वपूर्ण
प्रकरण में दोषसिद्धि के लिए न्यायालय में साक्ष्य के प्रस्तुतीकरण का तरीका एवं आरोपी का पूर्व इतिहास को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करना महत्वपूर्ण होता है। आरोपी के पूर्व इतिहास के आधार पर मामले को गंभीर बनाया जा सकता है। इस प्रकरण की पीड़िता बालिग और उच्च शिक्षित थी, इस आधार पर मामला आपसी सहमति का माना जा सकता था, किंतु आरोपी के पूर्व चरित्र के आधार पर न्यायालय ने आपसी सहमति को धोखे से ली गई सहमति माना और दंडित किया। इस मामले की विवेचना तत्कालीन सीएसईबी पुलिस चौकी प्रभारी एसआई कृष्णा साहू ने की थी। वे वर्तमान में बिलासपुर जिले के सरकंडा थाना में पदस्थ हैं।
आदेश के प्रमुख बिन्दु और तथ्य
@ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 90 के अनुसार कोई सम्मति ऐसी सम्मति नहीं है जो कि किसी भ्रम की परिणामस्वरूप दी गई हो।
@ विवाह कराने के लिये नोटरी सक्षम प्राधिकारी नहीं है। नोटरी को किसी भी विवाह के ईकरारनामा को सत्यापित करने का अधिकार नहीं है। इसलिये नोटरी के समक्ष इकरारनामा के माध्यम से किये गये विवाह को वैध विवाह नहीं माना जा सकता है।
@ प्रकरण में प्रस्तुत साक्ष्य से यह स्पष्ट है कि अभियुक्त का प्रारंभ से ही पीड़िता प्रार्थिया के साथ विवाह करने का कोई आशय नहीं था। अभियुक्त द्वारा पूर्व से दो बार विवाहित होते हुये स्वयं को अविवाहित बताते हुये पीड़िता प्रार्थिया को विवाह करने का धोखा देकर उसकी अवैध सहमति प्राप्त की गई और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाये गये। ऐसी धोखा से प्राप्त की गई सहमति को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 90 के अनुसार वैध सहमति नहीं माना जा सकता है।
@ अभियुक्त द्वारा पीड़िता प्रार्थिया के साथ बलात्संग कारित किया गया है।
@ अभियुक्त द्वारा पूर्व से विवाहित होते हुये पीड़िता को शादी का झांसा देकर एक से अधिक बार बलात्संग कारित कर शारीरिक शोषण किया गया। यदि इस प्रकार के अपराध को यदि कठोर दण्ड से दण्डित न किया जाये तो उसका गलत संदेश जायेगा एवं ऐसे अपराधों को रोकना संभव नहीं होगा।