कोरबा(आधार स्तंभ) : भारी बारिश के दौरान जल निकासी की व्यवस्था सही नहीं होने के कारण शहर से लगी एक कॉलोनी में अलग ही नजारा पेश आया। बारिश का पानी कालोनी के बीच नदी की तेज धार की तरह बहता रहा और फिर एक कार माचिस की डिबिया की तरह तैरती नजर आई।
पंडित रविशंकर शुक्ल नगर का यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें पोड़ीबहार और पंडित रविशंकर शुक्ल नगर को जोड़ने वाले मार्ग पर जल सैलाब में एक कार चालक अपनी लापरवाही से बाल-बाल बचा। वीडियो 2 दिन पूर्व हुई बारिश के दौरान का बताया जा रहा है। कार चालक कौन था और कहां जा रहा था, इसकी जानकारी नहीं मिल सकी है लेकिन जो भी घटित हुआ, वह बारिश के दौरान शहर क्षेत्र में जल निकासी की व्यवस्था की नाकामी को बताने के लिए काफी है।
नगर पालिक निगम क्षेत्र में ढांचात्मक विकास तो लगातार हो रहा है लेकिन इसके साथ-साथ निस्तार के लिए उचित मापदंड में नाली-नाला का निर्माण नहीं हो रहा है। अक्सर देखा जा रहा है कि पानी निकासी के लिए लोग अपने घरों और दुकानों का पानी सीधे सड़कों पर बहाते हैं। नाली नाम की चीज तो कई इलाकों में दिखती ही नहीं जबकि निगम द्वारा भवन निर्माण की अनुमति के दौरान यह स्पष्ट किया जाता है कि सड़क से निर्धारित दूरी छोड़कर निर्माण करना है और उक्त शेष भूमि पर नाली आदि का निर्माण कराया जाना है लेकिन इसका पालन करना-कराना,सब रद्दी में चला जाता है।
पानी की निकासी कहीं भी बाधित न हो, कोरबा नगर निगम क्षेत्र हो या अन्य नगरीय निकाय और पंचायत के इलाके, लोग पानी बहाने के संबंध में अपनी जिम्मेदारी भूलते जा रहे हैं जिसके कारण बरसात के मौसम में समस्या और भी ज्यादा बढ़ जाती है। जल निकासी की व्यवस्था छिन्न-भिन्न होने के कारण इसका खामियाजा आम जनता को ही भुगतना पड़ेगा, यह क्यों भूल जाते हैं।
इसके लिए प्रशासनिक कमजोरी सर्वाधिक जिम्मेदार है और जिम्मेदार अधिकारियों के द्वारा नियम- कायदों का पालन कराने और कर्तव्य निर्वहन की बजाय आपसी सम्बन्ध का ज्यादा ध्यान रखने के कारण क्षेत्र में समस्या बढ़ती ही जा रही है। नदी-नालों के किनारे बढ़ते अतिक्रमण को रोक पाने में नाकाम तमाम संबंधित विभागीय अमला की कमजोरी के कारण बढ़ता मनोबल नाली-नालों पर भी कब्जा करवा रहा है। काम चलाऊ व्यवस्था की मानसिकता के साथ नौकरी करके हर महीने अपनी तनख्वाह पक्की कर लेने की मानसिकता रखने वाले अधिकारी बदहाल होती व्यवस्थाओं के लिए ज्यादातर जिम्मेदार हैं। अधिकारी ही चुस्त नहीं रहेंगे तो मैदानी अमला भी सुस्त होगा। वैसे लंबे समय से एक ही जगह पदस्थ रहने के कारण कई अधिकारी तो यह सोचकर ड्यूटी निभा रहे हैं कि कितना भी कर लो व्यवस्था सुधरेगी नहीं तो मेहनत क्यों किया जाए..? वे नियमोँ का पालन कराने के प्रति गम्भीरता दिखाने की बजाय खानापूर्ति करते फोटो खिंचवाकर, विज्ञप्ति छपवाकर अपने शीर्ष अधिकारी व शासन की नजर में सक्रिय बताने का दिखावा बखूबी कर लेते हैं।